Monday 8 August 2011

तू जब भी लौट सके.....


हम सोच में खड़े थे
कि कहाँ जायें अब
ना कोई रास्ता ,
ना मंजिल कोई ,
ना कोई साथ था मेरे
जो भी मिले थे दोस्त
वो बेवफा मिले
तलाशते रहे हम इंसान,
ता उम्र...
हमें खुदा मिला
या फिर शैतान
ही मिले ....
एक दोस्त चाहते थे हम
खुद के वास्ते ...
कुछ ने दिखाए सपने
और कुछ् आंसू दे गए
हम ने छू लिया था
जिसके दिल को
उस दोस्त का
अब कोई पता नहीं ....
ना उसकी  अब कोई
खबर  मिले ..
वो खुद फैसला करता
तो गिला ना था मुझे
काश वो जानता कि
ये दुनिया तो
दोस्तों कि खुशी से  है जलें
इसलिए
वो दोस्त जो
दूसरों के कहने पर
चला करे ...
वो ,
भूल कर भी किसी से
दोस्ती ना  करे
पर आज भी
ये दिल अशोक का
घर है...तेरा
ए-दोस्त
तू जब भी लौट सके
लौट आना फिर .से ..
मेरी जिन्दगी में
मेरी धड़कन तरह  ||
रचना : अशोक अरोरा

1 comment:

  1. आपकी दोस्ती ...आपकी सोच को सलाम

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