जब तपती है धरती
वृक्ष सुलगते है
पशु पक्षी
नदी नाले सब
त्राही त्राही करते हैँ
तब सावन बन
बरस जाता है
बादल सब शीतल
शीतल करता है
एक नई जान
एक नयी उर्जा
हर शय मेँ
भरता है
मैँ सोच रही हूँ
मेरे साजन
तुम कब आओगे
कब बरसोगे
कब महकेगा
ये तनमन मेरा
कब मुझे तुम
परिपूर्ण कर जाओगे
कब होगा ऐसा.. ???
आखिर कब...????
~अशोक अरोरा~