एक सच्ची बात
तुम्हेँ सुनाता हूँ
तुम्हेँ सुनाता हूँ
एक घर मेँ
फिर एक नया
फिर एक नया
जन्म हुआ था
हर ओर खुशी का
आलम था
सब नाचे गाये थे
उसने भी
हुड़दंग मचाया था
सब नाचे गाये थे
उसने भी
हुड़दंग मचाया था
कुछ दिन गुजरे
उसने
महसूस किया
प्यार उसका था
बटा हुआ
जीवन पथ पर
जीवन पथ पर
चलते चलते
ना जाने कब
कब वो बड़ा हुआ
सब का ख्याल
रखना यही मंत्र था
ना जाने कब
कब वो बड़ा हुआ
सब का ख्याल
रखना यही मंत्र था
उसको सिखाया
गया
उसने देना
सिखा था
बाकी सब ने
लेना सिखा था
बाकी सब ने
लेना सिखा था
जब उनकी
उसे जरुरत थी
तब सब ने
उस से
मुँह फेरा था
तब मुझे शमा की
याद आयी
जो खुद को
रोज जलाती है
कतरा कतरा
पिघलती है
तिल तिल कर
जो मरती
है
खुद मिट
जाती है
पर हर दिल
रोशन करती है
वो भी अशोक
एक शमा है
जो खुद
के
रिश्तोँ की
आग मेँ
जलता है
और जलने
का
अभिशाप
साथ लिये
फिरता है
.....अशोक अरोरा
शमा का परवान तो सुना था
ReplyDeleteपर शमा का रिश्तों के रूप में जल जाना नहीं
बेहद खूबसूरत सोच के साथ लिखी गई कविता
आप का बहुत बहुत शुक्रिया अंजू जी ..
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