घायल तन है
घायल मन है
घायल हर एक
सपना है
मंजिल भले ही
कठिन है मेरी
हिम्मत अब भी
ज़िन्दा है
जीवन पथ पर
मुझ को
मिलोँ दूर
निकलना है
रीढ़ वहीन
इस समाज की
सुप्त सँवेदनाओँ को
सुप्त सँवेदनाओँ को
फिर से
जीवन देना है..
...अशोक अरोरा
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