गुनाह करते करते अब थक गया हूँ मैँ कुछ तो रहम कर परवरदीगार मुझ पे तेरी शरण मेँ अब आ गया.... हूँ मैँ बटोरता रहा दौलत मैँ सारे ज़माने की अपने सुख चैन को ना जाने किस मोड़ पे छोड़, आया हूँ मैँ मुझे नहीँ चाहिये ये दौलत ये ऐश ओ आराम अब तुझ से अगर हो सके तो मुझे लौटा दे मेरा घरबार, मेरा बचपन वो गाँव फिर से हे प्रभु... तेरी शरण मेँ अब आ गया हूँ मैँ .......अशोक अरोरा