मैं एक लाश हूँ ...
मैं एक लाश हूँ
पोस्ट.मोर्टेम के लिए
एक कोने मैं पडी
देख रही थी तमाशा
लाशें आ रहीं थी
जा रहीं थी
मैं अपनी मुक्ति के लिए
वहीँ पड़ी कराह रही थीमेरी मुक्ति राह में
रोकड़ा था अड़ा
एक कर्मचारीरोड़ा था बना ,मेरे अपनों के पासनहीं था कुछ भीउसे देने कोमैं सोचने कोमजबूर हुई ,क्यासंवेदनाये दम तोड़ चुकीइस आधुनिक समाज की
कब मिलेगी मुक्ति हमें
समाज के इस कलंक से
...... अशोक अरोरा.....June 23, 2011
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