दिन अभी ढला ना था
शाम अभी हुई ना थी
वक़्त रुका रुका सा था
ट्रेन अभी आई ना थी
हर ओर शोर शोर था,
मैं फिर भी
तन्हा तन्हा सा था
अचानक इस वक़्त में
किसी ने पुकारा मुझे
क्या तुमने पहचाना मुझे
वो आवाज़ दिल में उतर गयी
इस से पहले मैं बोलता
वो झट से बोल गयी
मैं तुम्हारी प्रीत हूँ
मैं तुम्हारा गीत हूँ
और आज इस मोड़ पर
तुम फिर मुझे मिल गए
क्या तुम्हे याद है
हम कभी साथ थे
मैंने कहा
हां मुझे याद है आज भी
वो बीता हुआ कल
वो बीता हुआ कल
वो खेत
वो खलिहान
वो सरसों के फूल
वो बगिया में आम
वो तेरा सुबह सुबह
उठते ह़ी मेरे घर
चले आना
चले आना
मुझे उठाना
वो तेरा बुलाना
घुमने साथ मेरे
वो दूर निकल जाना
कभी कभी गुस्से में
घुमने साथ मेरे
वो दूर निकल जाना
कभी कभी गुस्से में
वो तेरा मुझ को
प्यार से झिडक जाना
प्यार से झिडक जाना
वो तेरा रूठना और
मेरा मनाना
फिर जाकर सरसों के
खेतों बैठ जाना
वो तेरा चहकना
चिड़ियों को दाना खिलाना
हां मुझे याद है
वो तेरा चोरी से ला कर
मुझे खाना खिलाना
वो तेरी उंगली को
अचानक मेरा काट जाना
वो तेरा दर्द से तड़प जाना
और मेरा प्यार से
तेरे हाथों को चूम जाना
हां मुझे याद है
वो तेरा बड़ा हो जाना
और शरमाते हुए
मुंह में तेरा
पल्लू दबाना
हां मुझे याद है..
हां मुझे याद है..
वो अचानक तेरा
मुझ को छोड़ जाना
किसी ओर के पहलू में
वो तेरा गुम हो जाना
वो तेरा गुम हो जाना
हां वो सब
मुझे याद है
मुझे याद है
पर अब मेरी प्रीत,
मैं तुझसे मिलना
चाहता नहीं
चाहता नहीं
क्यूंकि
ना अब वो गाँव है
ना अब वो गाँव है
ना वो खेत हैं
ना खलिहान हैं
ऩा अब वो सरसों खिलती है
ना वो रसीले आम हैं
ना वो रसीले आम हैं
अब तो बस उस जगह,
कंक्रीट के अम्बार हैं
और ..
मैं हूं मेरी तन्हाईयों के
ढेर से गुब्बार हैं ...और ..
मैं हूं मेरी तन्हाईयों के
और ना ही अब तुम मेरी हो
रचियता: अशोक अरोरा
अह्हह्ह ......बेहद खूबसूरत शब्द रचना ..मज़ा आ गया पढ़ कर :)
ReplyDeletekhoobsurat rachna..sundar bhavbhivyakti..
ReplyDeleteबहुत खूब ... यादें कभी नहीं जाती ...
ReplyDelete