Saturday, 11 January 2014

कब ठहर जाये दिल



शाम ढली चाँद फिर निकलने लगा
समन्दर यादोँ का फिर मचलने लगा

ठहरा रहा जो दिन भर आंखोँ मेँ
वो बेचैन अश्क़ फिर ढलकनेँ लगा

वादा किया था अब ना तड़पेगा
नामुराद दिल ये फिर मुकरने लगा

साथ गुजरे थे तेरे जो दिन मेरे
मंज़र नज़र से वो फिर गुजरने लगा

आ जाओ अशोक कुछ पल तुम साथ मेरे
कब ठहर जाये दिल जो फिर धड़कनेँ लगा 

~अशोक अरोरा~

Sunday, 22 September 2013







आखिर कब....???

जब तपती है धरती

वृक्ष सुलगते है

पशु पक्षी 

नदी नाले सब

त्राही त्राही करते हैँ

तब सावन बन

बरस जाता है

बादल सब शीतल

शीतल करता है

एक नई जान

एक नयी उर्जा

हर शय मेँ

भरता है

मैँ सोच रही हूँ

मेरे साजन

तुम कब आओगे

कब बरसोगे

कब महकेगा

ये तनमन मेरा

कब मुझे तुम

परिपूर्ण कर जाओगे

कब होगा ऐसा.. ???

आखिर कब...????

~अशोक अरोरा~

Sunday, 1 September 2013

क्यूँ ना...




तुम बदले
सब बदल गया
अब क्या करूँ...???
सोचता हूँ
अब मोहब्बत
मेरे बस की
बात नहीँ
तू बसा है...
मन-मन्दिर मेँ
अब तक
क्यूँ ना तेरी
इबादत करूँ
~अशोक अरोरा~