शाम ढली चाँद फिर निकलने लगा
समन्दर यादोँ का फिर मचलने लगा
ठहरा रहा जो दिन भर आंखोँ मेँ
वो बेचैन अश्क़ फिर ढलकनेँ लगा
वादा किया था अब ना तड़पेगा
नामुराद दिल ये फिर मुकरने लगा
साथ गुजरे थे तेरे जो दिन
मेरे
मंज़र नज़र से वो फिर गुजरने लगा
आ जाओ अशोक कुछ पल तुम साथ मेरे
कब ठहर जाये दिल जो फिर धड़कनेँ लगा
~अशोक अरोरा~