Friday 26 July 2013

वो भी एक शमा है....











  




एक सच्ची बात
तुम्हेँ सुनाता हूँ
एक घर मेँ
फिर एक नया
जन्म हुआ था
हर ओर खुशी का
आलम था
सब नाचे गाये थे
उसने भी
हुड़दंग मचाया था 
कुछ दिन गुजरे 
उसने महसूस किया
प्यार उसका था 
बटा हुआ
जीवन पथ पर
चलते चलते
ना जाने कब 
कब वो बड़ा हुआ
सब का ख्याल
रखना यही मंत्र था 
उसको सिखाया गया 
उसने देना सिखा था
बाकी सब ने
लेना सिखा था
जब उनकी 
उसे जरुरत थी 
तब सब ने उस से  
मुँह फेरा था
तब मुझे शमा की
याद आयी
जो खुद को
रोज जलाती है
कतरा कतरा
पिघलती है
तिल तिल कर
जो मरती है
खुद मिट जाती है
पर हर दिल
रोशन करती है
वो भी अशोक
एक शमा है
जो खुद के
रिश्तोँ की
आग मेँ
जलता है
और जलने का
अभिशाप
साथ लिये
फिरता है

.....अशोक अरोरा 

2 comments:

  1. शमा का परवान तो सुना था
    पर शमा का रिश्तों के रूप में जल जाना नहीं
    बेहद खूबसूरत सोच के साथ लिखी गई कविता

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    1. आप का बहुत बहुत शुक्रिया अंजू जी ..

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