Monday 19 September 2011

आ अब साथ आ तू मेरे



मैं ज़िंदगी के दोराहे पर
खड़ा ये सोचा रहा था
क्यूँ मुझे से नाराज़ है
ये मेरी ज़िंदगी
ना जाने आज अचानक
ये क्या हुआ
मुझ से आ लिपटी
वो मेरी ज़िंदगी
ले अपनी आगोश में
मुझ से मेरे कानों में
ये बोली मेरी ज़िंदगी
मैं तुझसे नाराज नहीं हूँ
तुझ से दूर जा के
मैं भी बहुत रोयी हूँ
केवल तुने नहीं
मैंने भी तुझ से
दूर रह कर
बहुत कुछ खोया है
अब ना जाऊँगी कभी
मैं तुझ को तन्हा छोड़ क़र
आ अब साथ आ तू मेरे
अब मिल क़र
बसर करें हम तुम
अब ये अपनी ज़िंदगी...ये अपनी ज़िंदगी
ये अपनी ज़िंदगी...ये तेरी मेरी ज़िंदगी ||
.......अशोक अरोरा......

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