Wednesday 27 July 2011

एक अनचाही आग.....


एक दिन 
सुबह सुबह 
शहर मेँ
एक चौराहे पर 
मुझे 
एक मासुम मिला
लाल लाल गाल थे 
उस के
चेहरा भी था 
भरा भरा
मैँने पूछा 
यहाँ पर क्यूँ
खडे हुए  हो
किन माँ बाप के
दुलारे हो
कहाँ पर हैँ 
माँ बाप तुम्हारे
वो बोला
दोनोँ मुझ से 
दूर हूये हैँ
मिलने से  
मजबूर हूये हैँ
दोनोँ ने 
अपनी अपनी दुनिया 
अलग बसा ली है 
माँ ने भी 
ममता बिसरा दी
बाप का प्यार 
माँ की ग़ोदी
उसका आँचल 
उसकी लौरी
यह सब मुझसे 
अब दूर हुए हैँ
और मैँ यहाँ 
पर खडा हुआ
अब बाट जौह रहा
एक संरक्षक की
मेरा मन तब
तड़प गया और
मुँह से ये निकल गया 
कि हे प्रभु
कैसे माँ बाप हैँ ये
इस युग के 
अपनी तो दुनिया 
बसा ली
और इस मासूम की
दुनिया मेँ 
एक अनचाही
आग लगा दी..... 

..........अशोक-अरोरा

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