Monday 19 September 2011

आ अब साथ आ तू मेरे



मैं ज़िंदगी के दोराहे पर
खड़ा ये सोचा रहा था
क्यूँ मुझे से नाराज़ है
ये मेरी ज़िंदगी
ना जाने आज अचानक
ये क्या हुआ
मुझ से आ लिपटी
वो मेरी ज़िंदगी
ले अपनी आगोश में
मुझ से मेरे कानों में
ये बोली मेरी ज़िंदगी
मैं तुझसे नाराज नहीं हूँ
तुझ से दूर जा के
मैं भी बहुत रोयी हूँ
केवल तुने नहीं
मैंने भी तुझ से
दूर रह कर
बहुत कुछ खोया है
अब ना जाऊँगी कभी
मैं तुझ को तन्हा छोड़ क़र
आ अब साथ आ तू मेरे
अब मिल क़र
बसर करें हम तुम
अब ये अपनी ज़िंदगी...ये अपनी ज़िंदगी
ये अपनी ज़िंदगी...ये तेरी मेरी ज़िंदगी ||
.......अशोक अरोरा......

Saturday 3 September 2011

तेरी याद बहुत सताती है



जब सुबह सूरज की
पहली किरणों ने
मेरे माथे को चूमा तो .....
मुझे याद आया
वो सुबह-सुबह
तेरे होंठों का मेरे माथे को
चूम जाना
मेरे तन बदन में
स्फूर्ति का भर जाना ||
मुझे याद आया
वो तेरा मंदिर में जाना
घंटी बजाना और
मीठे सुरों में
आरती गाना
हम सब के लिए
उस रब को मना ||
मुझे याद आया
वो तेरा रसोई में जाना
और हम सब के लिए
पकवान बना
हम सब को अपने
हाथों से
फिर तेरा खिलाना ||
मुझे याद आया
वो मेरा स्कूल से
घर वापस आना
मेरी रहा पर
तेरा टिकटिकी लगाना
अपने हाथों से
मेरे कपड़े बदलना
मेरी स्कूल
डायरी को पढ़ना
फिर मुझ को
होमवर्क कराना ||
मुझे याद आया
वो मेरा
शरारतों का करना
तुझ को सताना
और तेरा कभी कभी
गुस्से में मुझे
झापड़ लगाना
वो मेरा रूठ जाना
और तेरा मुझे मनाना
मुझे दुखी देख
वो तेरा आंसू बहाना ॥
मुझे याद आया
वो रातों में मुझे
नींद  ना आना
और मेरा घबराना
तब अपने हाथों से
तेरा मुझे थपथपाना,
वो लोरी सुनाना तब
मेरा तेरे सीने से
लिपट कर सो जाना
आज भी माँ मुझे
नींद नहीं आती है
और तेरी याद बहुत
सताती है ||
और मैं 'अशोक'  सोचा करता हूँ
एक माँ ही क्यूँ ऐसी होती है.....||
..........अशोक अरोरा.........